शेयर बाजार की पारिभाषिक शब्दावली - सिक कंपनी

सिक कंपनी : बीमार कंपनी या मंद कंपनी को सिक कंपनी कहा जाता है। कंपनी अधिनियम में बीमार कंपनी की व्याख्या की गयी है जिसके अनुसार जिस कंपनी की नेटवर्थ समाप्त हो गयी हो अर्थात जिस कंपनी का संचित घाटा बढ़कर उसकी नेटवर्थ से अधिक हो गया हो तो उसे बीमार कंपनी माना जाता है और ऐसी कंपनी बीमार कंपनी कही जाती है। बीमार हो चुकी कंपनी का इलाज हो सकता है, जिसके तहत प्रमोटर कंपनी में अन्य धन का निवेश करते हैं, दूसरे प्रमोटरों को सहभागी बनाते हैं जिससे वह कंपनी बीमारी से बाहर आ सकती है। बीमार कंपनी को बीआईएफआर (बोर्ड फार इंडस्ट्रीयल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन्स) में सूचीबद्ध कराना होता है। यह बोर्ड कंपनी की स्थिति की जांच करके उसके इलाज की सलाह देता है। यदि उसे सुधरने का कोई रास्ता नजर नहीं आता तो ऐसी कंपनियों को वाइंड-अप (बंद) करने की सलाह दी जा सकती है। निवेशकों को ऐसी कंपनियों पर दोहरी नजर रखनी चाहिए। यदि ऐसी कंपनियों के सुधरने की संभावना हो तो उस कंपनी के शेयर कम भाव पर खरीद लेने चाहिए और यदि कंपनी बंद होती नजर आये तो अपने शेयर बेच देने चाहिए।

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